وإني وإن جئت المشيب لمولع |
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بطرّة ظلّ فوق وجه غدير |
وقال ابن خفاجة أيضا (١) : [السريع]
وأسود يسبح في لجّة |
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لا تكتم الحصباء غدرانها |
كأنها في شكلها مقلة |
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وذلك الأسود إنسانها (٢) |
وكتب الوزير الشهير أبو الوليد بن زيدون إلى الوزير أبي عبد الله بن عبد العزيز أثر صدوره عن بلنسية (٣) : [مجزوء الكامل]
راحت فصحّ بها السقيم |
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ريح معطّرة النسيم |
مقبولة هبّت قبو |
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لا فهي تعبق في الشّميم |
أفضيض مسك أم بلن |
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سية لريّاها نميم |
إيه أبا عبد الإل |
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ه نداء مغلوب العزيم |
إن عيل صبري من فرا |
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قك فالعذاب به أليم (٤) |
أو أتبعتك حنينها |
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نفسي فأنت لها قسيم |
ذكري لعهدك كالعرا |
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ر سرى فبرّح بالسّليم |
مهما ذممت فما زما |
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ني في ذمامك بالذميم |
زمن كمألوف الرضا |
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ع يشوق ذكراه الفطيم |
أيام أعقد ناظري |
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في ذلك المرأى الوسيم |
وأرى الفتوّة غضّة |
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في ثوب أوّاه حليم |
الله يعلم أنّ حب |
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بك من فؤادي في الصميم |
ولئن تحمّل عنك لي |
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جسم فعن قلب مقيم (٥) |
قل لي بأيّ خلال سر |
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ك فيك أفتن أو أهيم |
ألمجدك العمم الذي |
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نسق الحديث مع القديم |
أم ظرفك الغضّ الجنى |
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أم عرضك الصافي الأديم (٦) |
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(١) ديوان ابن خفاجة ص ٣٦٣.
(٢) إنسان العين : بؤبؤها.
(٣) ديوان ابن زيدون ص ٢٠١.
(٤) عيل الصبر : نفد ، وطفح الكيل به.
(٥) تحمّل عنه : ارتحل. وأراد أن قلبه مقيم وإن ارتحل جسده.
(٦) الأديم : الجلد