استغفر الله يا ذا المنّ مغفرة |
|
للعبد بالتاء تمحو حاء حوبته (٨٣) |
عبد أطاع الهوى والفجر مختلط |
|
بليله وأطاع غيّ شرّته |
إني ومن لي وكلّ من تعلق بي |
|
في سور مأمنه وأمن حوطته |
أصلح بنا الدين والدنيا وأمّة من |
|
به تشفّع يجلو غين غمته (٨٤) |
يا رب أصلح لنا الدارين إن لنا |
|
تمسّكا بالنبيّ الهادي وعروته |
إذا تسامت لشكره قرائحنا |
|
تملي شمائله ضروب نعمته |
كأنما اللؤلؤ المكنون ينثر أو |
|
مختوم مسك يفضّ عند مدحته |
لو حاول الشّعرا نظم الكواكب في |
|
سمط الثناء لأعيوا دون جملته |
وليس يحتاج مدحا بعد خالقه |
|
إذ غيره لا يؤدّي نشر طيّته |
فاقرأ لياسين والضّحى ومثلهما |
|
إن كنت جاهل قدره ورتبته |
يا ربّ صلّ صلاة لا نظير لها |
|
عليه ما ارتاح مرتاح لرحمته |
سلم سلاما عليه لا يكافئه |
|
بين النبيئين إلا قدر رفعته |
__________________
(٨٣) حوبته : شدة وسوء حاله.
(٨٤) غين : غشاء.