كأن فؤادي يوم قمت مودعا |
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عبيلة منّي هارب يتمعّج (١) |
وقوله :
ضحكت عبيلة إذ رأتني عاريا |
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خلق القميص وساعدي مخدوش (٢) |
وقوله :
فيا نسمات البان بالله خبّري |
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عبيلة من رحلي بأي المواضع (٣) |
وقوله أيضا :
لقد قالت عبيلة إذ رأتني |
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ومفرق لّمتي مثل الشّعاع (٤) |
ويقول :
عجبت عبيلة من فتى متبدل |
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عاري الأشاجع شاحب كالمنصل (٥) |
ويقول :
وخبّر عن عبيلة أين حلّت |
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وما فعلت بها أيدي الليالي (٦) |
وقوله :
ترى علمت عبيلة ما ألاقي |
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من الأهوال في أرض العراق (٧) |
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(١) ديوان عنترة ٣١.
(٢) ديوان عنترة ٩٥.
(٣) ديوان عنترة ٩٧.
(٤) ديوان عنترة ١٠٠.
(٥) ديوان عنترة ١٢٠.
(٦) ديوان عنترة ١٢٧.
(٧) ديوان عنترة ١١٢.