نصب ابن هند رأسه |
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فوق القنا نصب العلامة |
ومقبل كان النبيّ |
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بلثمه يشفي غرامه |
قرع ابن هند بالقضيب |
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عذابه فرط استضامه |
وشدا بنغمته عليه |
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وصب بالفضلات جامه |
والدين أبلج ساطع |
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والعدل ذو خال وشامه |
يا ويح من ولّى الكتاب |
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قفاه والدّنيا أمامه |
ليضرسنّ يد الندامة |
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حين لا تغني الندامه |
وليدركنّ على الغرامة |
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سوء عاقبة الغرامة |
وحمى أباح بنو يزيد |
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على طوائلهم حرامه |
حتى اشتفوا من يوم بدر |
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واستبدوا بالزعامه |
لعنوا أمير المؤمنين |
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بمثل إعلان الإقامه |
لم لم تخري يا سماء |
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ولم تصبي يا غمامه؟ |
لم لم تزولي يا جبال |
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ولم تشولي يا نعامه؟ |
يا لعنة صارت على |
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أعناقهم طوق الحمامه |
إنّ الإمامة لم تكن |
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دون البتول ولإكرامه |
من سبط هند وابنها |
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وضرّجي بدم رغامه |
يا عين! جودي للبقيع |
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وقبّلي عني مقامه |
جودي على جدث الغري |
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ووفّري عني ذمامه |
جودي لمشهد كربلا |
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أجد بما جاد ابن مامه |
جودي بمسكوب الدموع |
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وأرسلي بددا نظامه |
جودي بمكنون الدموع |
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للئيم ما تحت العمامة |