ندمت على ما كان منّي فقدتني |
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كما يندم المغبون حين ينيخ ١٥٣٧ |
قافية الدال
وذكرت من لبن المحلّق شربة |
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والخيل تعدو بالصّعيد بداد |
٤٠٦٨ ماذا ترى في عيال قد برمت بهم |
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لم أحص عدّتهم إلّا بعدّاد |
٣٤٦٩ أبصارهنّ إلى الشّبّان مائلة |
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وقد أراهنّ عني غير صدّاد |
٤٧٩٥ وما زلت من ليلى لدن أن عرفتها |
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لكالهائم المقصى بكلّ مذاد |
١٣٥٣ أريد حياته ويريد قتلي |
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عذيرك من خليلك من مراد |
٣٦٩٠ ، ٣٦٩٢ ملئت رعبا وقوم كنت راجيهم |
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لمّا دهمتك من قومي بآساد |
٣٤٩٧ إذا ما عدّ أربعة فسال |
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فزوجك خامس وحموك سادي |
٥٢٣٢ لست ممّن يكعّ أو يستكينو |
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ن إذا كافحته خيل الأعادي |
٧٢٥ شدخت غرّة السّوابق منهم |
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في وجوه إلى اللمام الجعاد |
٢٩١٧ بانت قطام ولمّا يحظ ذو مقة |
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منها بوصل ولا إنجاز ميعاد |
٢٣٤٢ إلّا بقيّة أنفاس نحشرجها |
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كراحل رائح أو باكر غاد |
٢١٧٤ ومن يتّق فإنّ الله معه |
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ورزق الله مؤتاب وغادي |
٢٩٧ وكائن ذعرنا من مهاة ورامح |
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بلاد العدا ليست له ببلاد |
٢٥١٥ يا كعب صبرا على ما كان من حدث |
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يا كعب لم يبق منا غير أجلاد |
٢١٧٤ لو شهد عاد في زمان عاد |
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لابتزّها مبارك الجلاد |
٤٠٢٧ كانوا ثمانين أو زادوا ثمانية |
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لو لا رجاؤك قد قتّلت أولادي |
٣٤٦٩ وقال النّاصحون تخلّ عنها |
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ببذل قبل شيمتها الجماد |
١٢٨٨ جماد لها جماد ولا تقولن |
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طوال الدّهر ما ذكرت حماد |
٤٠٦٧ يا لقومي وللّذين تولّو |
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هم لباغين بغيهم في ازدياد |
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