١٥١ عميرة ودع إن تجهزت غازيا |
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كفى الشيب والإسلام للمرء ناهيا |
١٥٥ مهما لى الليلة مهما ليه |
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أودى بنعلى وسرباليه |
١٦٠ أليس عجيبا بأن الفتى |
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يصاب ببعض الذى فى يديه |
١٧٣ أرانى إذا أصبحت أصبحت ذا هوى |
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فثم إذا أمسيت أمسيت غاديا |
٢١٧ يا رب قائلة غدا : |
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يا لهف ام معاويه |
٢٣٧ وآس سراة الحى حيث لقيتهم |
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ولا تك عن حمل الرباعة وانيا |
٢٦٥ أتانا فلم نعدل سواه بغيره |
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نبى بدا فى ظلمة الليل هاديا |
٢٧١ وقائلة : خولان فانكح فتاتهم |
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وأكرومة الحيين خلو كما هيا |
٣٣٨ كلانا غنى عن أخيه حياته |
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ونحن إذا متنا أشد تغانيا |
٣٨٩ لئن كان ما حدثته اليوم صادقا |
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أصم فى نهار القيظ للشمس باديا |
٣٩٤ تعز ؛ فلا شىء على الأرض باقيا |
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ولا وزر مما قضى الله واقيا |
٣٩٦ وحلت سواد القلب ، لا أنا باغيا |
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سواها ، ولا عن حبها متراخيا |
٣٩٧ إذا الجود لم برزق خلاصا من الأذى |
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فلا الحمد مكسوبا ولا المال باقيا |
٤٠٧ يقولون : لا تبعد ، وهم يدفنوننى ، |
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وأين مكان البعد إلا مكانيا؟ |
٤٥٠ وتضحك منى شيخة عبشمية |
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كأن لم ترى قبلى أسيرا يمانيا |
٤٧٨ ولو أن واش باليمامة داره |
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ودارى بأعلى حضرموت اهتدى ليا |
٤٨٠............. |
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وجبت هجيرا يترك الماء صاديا |
٤٩١ لما نافع يسعى اللبيب فلا تكن |
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لشىء بعيد نفعه الدهر ساعيا |
٥٥٦ ومستبدل من بعد غضبى صريمة |
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فأحر به من طول فقر وأحريا |
٦٠٠ ألفيتا عيناك عند القفا |
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أولى فأولى لك ذا واقيه |
٦٤٨ فإما كرام موسرون لقيتهم |
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فحسبى من ذى عندهم ما كفانيا |
٦٥٣ ألم تر أنى يوم جو سويقة |
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بكيت ، فنادتنى هنيدة ماليا |
٦٧٠ فأبلونى بليتكم لعلى |
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أصالحكم وأستدرج نويا |
٧٠٣ على إذا مازرت ليلى بخفية |
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زيارة بيت الله رجلان حافيا |
٨٢٤ إنى إذا ما القوم كانوا أنجيه |
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واضطرب القوم اضطراب الأرشيه |
هناك أوصينى ولا توصى بيه |