البيت |
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القائل |
الصفحة |
حرف الضاد |
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أيّها الرّاكب الميمّم أرضي |
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أقر من بعضي السّلام لبعضي |
عبد الرحمن بن معاوية |
٢٤١ |
حرف العين |
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ذهب الأحبّة بعد طول تزاور |
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ونأى المزار فأسلموك وأقشعوا |
سليمان بن يزيد العدوي |
١٥٧ |
ما تنقضي حسرة منّي ولا جزع |
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إلّا ذكرت شبابا ليس يرتجع |
منصور النمري |
٣٧٤ |
حرف الفاء |
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أيا شجر الخابور مالك مورقا |
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كأنّك لم تجزع على ابن طريف |
فارعة |
٢٣ |
حرف القاف |
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بان الشّباب ورقّ عظمي وانحنى |
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صدر الفتاة وشاب منّي المفرق |
بان مفرّغ الحميري |
١٦٠ |
حرف اللام |
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ألم تر أنّ الجود من لدن آدم |
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تحدّر حتّى صار في راحة الفضل |
مروان بن أبي حفصة |
٢١ |
اسقني واسق خليلي |
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في مدى اللّيل الطّويل |
آدم بن العزيز |
٣٢ |
إنّ بالشّعب الّذي دون سلع |
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لقتيل دمه ما يطل |
خلف الأحمر |
١٠٨ |
يا نخل أنت غريبة مثلي |
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في العرب نائية عن الأصل |
عبد الرحمن بن معاوية |
٢٤١ |
حرف الميم |
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ارفع ضعيفك لا يحزنك ضعفه |
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يوما فتدركه العواقب قد نما |
عائشة |
١٥٣ |
فدع ذا وقل في بني هاشم |
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فإنّك بالله تستعصم |
ابن مفرّع الحميري |
١٦٠ |
جعل القرآن إمامه ودليله |
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لمّا تخيّره القرآن إماما |
منصور النمري |
٣٧٤ |
لشتّان ما بين اليزيدين في النّدى |
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يزيد سليم ، والأغرّ ابن حاتم |
ربيعة بن ثابت |
٤٠٢ |
حرف النون |
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شجاك الحيّ إذا بانوا |
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فدمع العين هتّان |
ابن مفرّغ الحميري |
١٥٨ |