همرهِ يك ناقه رهوار زود |
| جانبِ آن قافله بر همچو دود |
چون رسى آنجا كه بود كاروان |
| پيش رو ومائدة را بگذران |
معذرتِ من همه را تازه ده |
| ناقه بآن صاحبِ جمّازه ده |
مردمِ آن قافله را اين سخن |
| شور بر آورد ز جان وز تن |
هركسى از بهرِ مرادى چو باد |
| رو به سوىِ تربتِ حاتم نهاد |
صاحبِ جمّازه هم آواز كرد |
| پيشِ كسان معذرت آغاز كرد |
گفت كه : اى شمع شبستانِ جود |
| وى كفِ تو ابرِ گلستانِ جود |
بى ادبى كرده ام از حد بدر |
| تو ز ادب كردنِ من درگذر |
چون ز دمت دست به دامن چو خار |
| دامنِ خود جمع مكن غنچه وار |
همچو دلت روحِ تو مسرور باد |
| همچو رخت خاكِ تو پرنور باد |
اى چو گل افكنده هوسهاىِ تو |
| بر سرِ زر لرزه هر اعضاىِ تو |
دارى اگر اصل چو درّ يتيم |
| روى مگردان ز كرم چون سليم |
تمّت ».
قال المصنّف (ره) : « ورويتم عن الشّعبىّ أنّ الحجّاج بن
يوسف سأله عن أمّ وأخت وجدّ »
( انظر ص ٣٤٢ ـ ٣٤٥ ) :
ونقلنا فى ذيل الصّفحة ما اطّلعنا عليه الاّ أنّى وقفت بعد ذلك على مورد آخر ينبغى أن نذكره هنا وهو هذا : قال المسعودىّ فى مروج الذّهب تحت عنوان « ذكر طرف من أخبار الحجّاج وخطبه وما كان منه فى بعض أفعاله » ضمن ما ذكر ( انظر ج ٣ من النسخة المصحّحة بتصحيح محمّد محيى الدّين عبد الحميد ) ما نصّه :
« حدّثنا المنقرىّ عن جعفر بن عمرو الحرصىّ عن مجدى بن رجاء قال : سمعت